नवरात्रि और नव दुर्गा स्वरुप वर्णन - कौन है नव दुर्गा ?

नवरात्रि और नव दुर्गा स्वरुप वर्णन - कौन है नव दुर्गा ?

 नवरात्रि और नव दुर्गा स्वरुप वर्णन - कौन है नव दुर्गा ?

Hello, नमस्ते दोस्तों आज हम आपके सामने लाये है एक ऐसा शीर्षक जो हर भक्ति के प्रति जागरूक ने कभी न कभी जरुर जानना चाहा होगा, जी हाँ हम आज बात करेंगे माता के भक्तजनों के उस पावन शीर्षक माता के नवदुर्गा स्वरुप के विषय में, तो आईये जानते है |

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क्या है नवरात्रि ? क्या है इनका महत्व ?

नवरात्रि एक सनातन धर्म में मनाया जाने वाला महापर्व है जिसमे भक्त माता आदिशक्ति के नौ दिव्य स्वरुप की पूजा अर्चना करते है | माता के हर दिव्य स्वरुप की एक अलग महिमा है माता के नौ स्वरुप सभी भक्तो का कल्याण करने वाली है | 

 माता के नवदुर्गा स्वरुप

माता के नव दुर्गा स्वरुप निम्नलिखित है :
1. शैलपुत्री 2. ब्रह्मचारिणी 3. चंद्रघंटा 4. कुष्मांडा 5. स्कंदमाता 6. कात्यायनी 7. कालरात्रि 8. महागौरी 9. सिद्धिदात्री

माता के स्वरुप की महिमा

  1.  शैलपुत्री : ब्रह्मपुत्र प्रजापति दक्ष के घर माता ने सति रूप में जन्म लिया और महादेव शिव से विवाह किया जो प्रजापति दक्ष को स्वीकार नहीं था इसलिए उन्होंने अपनी पुत्री से संबंध तोड़ लिए और अपने महायज्ञ में उन्हें आमंत्रण नहीं दिया और इस बात से अनभिज्ञ माता यज्ञ में जा पहुची जिससे क्रोधित होकर उनके पिता प्रजापति दक्ष ने माता और महादेव शिव का घोर अपमान किया जिससे माता ने स्वयं को योगाग्नि में दहन कर लिया था | जिससे क्रोध में महादेव ने दक्ष का सर धर से अलग कर दिया था और फिर महादेव दुखी होकर ध्यान में चले गये उधर तारकासुर नामक असुर ने इस महावियोग का लाभ उठा कर ब्रह्मदेव से शिवशक्ति पुत्र से वध का वरदान प्राप्त कर अपना आतंक आरम्भ कर दिया तब माता ने दोबारा महाराज हिमवान की पुत्री के रूप में जन्म लिया जो माता शैलपुत्री कहलाई |



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  2.  ब्रह्मचारिणी : माँ शैलपुत्री महादेव शिव को अपना सर्वस्व मानती थी और उनसे ही विवाह की प्रबल इच्छा प्रकट कर बैठी थी, परन्तु महादेव महायोग ध्यान में थे, और उन्हें केवल एक भक्त की शुद्ध और पवित्र भक्ति ही इस ध्यान योग से जगा सकती थी | इस बात को संज्ञान में लेकर माता ने योगिनी अथवा ब्रह्मचारिणी रूप को धारण करके कई वर्षो तक महातप किया | जिसमे पहले एक समय फल खाकर फिर पत्ते खाकर फिर केवल जल पर फिर जल का भी त्याग करके किया | जिससे माता को महायोगिनी और ब्रह्मचारिणी नाम से पुकारा गया |



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  3.  चंद्रघंटा : माता की अटूट और अद्वितीय भक्ति से महादेव शिव भी प्रसन्न हुए बिना नहीं रह पाए और उन्हें उनका मनोवांछित वर प्रदान किया, और उनसे विवाह किया | माता प्रतिदिन प्रभु की आराधना करती और सेवा करती थी | ये बाते असुर राज तारकासुर को जब पता चली तो उसने कैलास पर असुरों को गुप्तचर बना कर भेजा जिनके आगमन से माता का क्रोध जाग गया और माता ने जनमानस को एक नयी महिमा दिखाई जिससे वो हम मनुष्य जाति कोएक सन्देश देने की सोची और चंद्रघंटा रूप धारण किया और ये समझाया जो स्त्री अपने स्वामी की सेवा करती है उनकी भक्ति का प्रभाव क्या होता है | माता ने इस रूप में संध्या वंदन और घंटा बजाने का महत्व बताया |



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  4.  कुष्मांडा : माता का यह स्वरुप सबसे विशेष और महत्वपूर्ण है | इस स्वरुप को विशेष और महत्वपूर्ण कहने के पीछे उनकी महिमा है जो कि बहुत अनोखी और अभूतपूर्व है | माता ने इस महादिव्य स्वरुप की एक मंद शीतल और हलकी मुस्कान (कुष्म) से ब्रह्माण्ड की रचना की थी जिससे माता को कुष्मांडा कहा जाता है |


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  5.  स्कंदमाता : माता ने यह स्वरुप स्त्री के अलगे स्वरुप की महिमा समझाने के लिए लिया था जिसमे माता मनुष्य को यह बतलाना चाहती है कि एक स्त्री केवल स्त्री या केवल पत्नी नहीं एक माँ भी होती है और संतान की रक्षा केवल पिता नहीं माँ का भी दायित्व है | शिवशक्ति की संतान के जन्म की चर्चा पुरे संसार में हो रही थी | इससे महिषासुर को मृत्यु का भय सताने लगा तो उसने उस संतान को मरने के लिए असुरों की विशेष सेना भेजी क्युकी माता चंद्रघंटा ने केवल घंटे के ध्वनि मात्र से असुरों का नाश कर दिया था तब माता ने स्कन्द (कार्तिकेय) को गोद में लेकर उन असुरों की विशेष सेना का अकेले संहार किया था | इसलिए माता को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है |


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  6. कात्यायनी : कार्तिकेय जी के द्वारा महाबलशाली तारकासुर के वध हो जाने के बाद असुर गुरु शुक्राचार्य के निर्देश पर किसी असुर ने त्रिदेवो के निवाश पर आक्रमण नहीं किया असुर राज महिषासुर ने स्त्रीयों के सिवा सभी से अवध्य होने का वरदान पाकर निरंकुश अत्याचार आरम्भ कर दिया था इसलिए समस्त संसार के कल्याण के लिए माता ने साधारण ऋषि कन्या के रूप मर महर्षि कात्यायन के घर पर जन्म लिया इसलिए माता कात्यायनी कहलाई | 


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  7. कालरात्रि : महिषासुर ने जब देवलोक पर आधिपत्य स्थापित करने के बाद ऋषि मुनियों पर भी अत्याचार आरम्भ कर दिया और देव पुत्रो और ऋषि कन्याओ का भी अपहरण आरम्भ कर दिया तब माता का दस महाविद्याओ में सबसे विकराल और विद्रूप स्वरुप कालरात्रि का जन्म हुआ | 


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  8. महागौरी : माता का कालरात्रि स्वरुप इतना भयावह और विकराल था की जिनके क्रोध और तेज से समस्त सृष्टि का विनाश नज़र आने लगा तब त्रिदेवों और अन्य देवो ने माता कात्यायनी से विनती और प्रार्थना करके उनके ही अतिमोहक गौरवर्ण और सौम्य् स्वरुप का आह्वाहन किया तब माता ने बल्यारूप तज कर अपना महागौरी स्वरुप प्रकट किया और सृष्टि में आये असंतुलन को नियंत्रित किया | माता का कालरात्रि स्वरुप जितना स्याह और श्याम था माता का दूसरा स्वरुप उतना ही गौर और उज्जवल था इसलिए महर्षि नारद ने माता को महागौरी नाम से पुकारा | 


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  9. सिद्धिदात्री : माता का अंतिम और सबसे प्रभावी स्वरुप जो दस महाविद्याओ में मुख्य भूमिका निभाती है सिद्धिदात्री समस्त सिद्धियाँ और निधियो को प्रदान करने वाली जिन्होंने त्रिदेवों को भी सिद्धियाँ प्रदान की वो माता सिद्धिदात्री है |

    नवरात्रि का से सीख :- नवरात्रि केवल अनुष्ठानों और भक्ति का पर्व नहीं है; यह हमारे भीतर और आसपास के बदलाव का प्रतीक है। देवी के प्रत्येक स्वरूप हमें कुछ बेहद महत्वपूर्ण सिखाते हैं — मजबूत कैसे बनें, करुणाशील कैसे रहें, धैर्य कैसे रखें, प्रखर कैसे बनें, बुद्धिमान कैसे बनें और संतुलन कैसे बनाए रखें। ये कथाएँ शाश्वत रूप से हमें याद दिलाती हैं कि दिव्य स्त्री शक्ति हर हृदय में विद्यमान है।

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